पुरस्कार

गुडविन मसीह
पोस्टमैन!.....पोस्टमैन ने दरवाजे पर आवाज लगाई। राहुल जब तक दरवाजे पर पहुंचा, पोस्टमैन चिट्ठी डालकर जा चुका था। राहुल ने दरवाजे पर पड़ा लिफाफा उठाया और कमरे में आकर मेज पर रख दिया। उसके बाद वह अपनी पढ़ाई करने लगा।
‘‘किसकी चिट्ठी आई है बेटा....? तेरे पापा की...?’’ राहुल की मम्मी ने रसोई में काम करते हुए पूछा।
‘‘पता नहीं मम्मी, मैंने खोलकर नहीं देखी है।’’ राहुल ने पूर्ववत किताब पढ़ते हुए कहा।
‘‘...तो खोलकर देख लो बेटा।’’ उसकी मम्मी ने पुनः कहा।
‘‘ठीक है मम्मी, देख लेता हूं।’’
मम्मी के कहने पर राहुल ने लिफाफा उठाया और उसमें रखे पत्र को निकालकर पढ़ने लगा। 
पत्र में लिखा था।
प्रिय राहुल सदैव प्रसन्न रहो!
बेटा, तुम तो अपनी आन्टी को भूल चुके होगे पर बेटा तुम्हारी आंटी तुम्हें भुला नहीं पायीं हैं। भुलाती भी कैसे आखिर तुम्हारी बजह से मेरे बेटे दीपू को नया जीवन जो मिला है। बेटा दीपू की जान बचाकर तुमने मुझ पर जो उपकार किया है उसे मैं जीवन पर्यन्त नहीं भूल पाऊंगी। बेटा आज भी मैं उस घटना को याद करके कांप जाती हूं। बेटा, अपने बारे में सभी सोचते हैं लेकिन दूसरों के बारे में बहुत कम लोग सोचते हैं। उस दिन तुमने अपनी जान जोखिम में डालकर दीपू को मौत के मुंह से निकालकर जिस साहस और बहादुरी का परिचय दिया था वो मेरे लिए अविस्मरणीय है। 
बेटा, तुम्हारी बहादुरी और साहस से प्रभावित होकर मैंने सरकार से अपील की थी कि वह तुम्हें तुम्हारी बहादुरी के लिए पुरस्कृत करे। बेटा, तुम्हें यह जानकर प्रसन्नता होगी कि सरकार ने मेरी अपील को स्वीकार कर लिया है और जल्दी ही तुम्हें तुम्हारी बहादुरी के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। 
यह एक ऐसा पुरस्कार होगा, जो हमेशा तुम्हारा मार्गदर्शन और उत्साहवर्धन करता रहेगा। प्यार के साथ पत्रांत कर रही हूं।’’ तुम्हारी सलोनी आंटी ।
पत्र पढ़कर राहुल खुशी से झूम उठा और अतीत की उन यादों में जा पहुंचा, जिसका जिक्र सलोनी आंटी ने अपने पत्र में किया था। 
एक-एक-पल, एक-एक क्षण उसकी आंखों के समक्ष किसी चलचित्र की भांति घूमने लगा।
बारह वर्षीय राहुल साहसी और बहादुर लड़का था। करीब दो माह पूर्व वह अपने स्कूल की तरफ से स्काउट एण्ड गाईड रैली में नैनीताल गया हुआ था। उन दिनों नैनीताल का मौसम काफी सुहावना था। देश के समस्त अंचलों से सैलानी सैर के लिए वहां आए हुए थे। 
उस दिन इतवार की छुट्टी थी। राहुल के सभी दोस्त नैनीताल घूमने गए हुए थे लेकिन राहुल को कैम्प से सम्बन्धित आवश्यक कार्य निबटाना था इसलिए वह घूमने नहीं जा सका।
चारों ओर से अनभिज्ञ राहुल बड़ी तन्मयता से टैंट में बैठा अपना कार्य कर रहा था। कि अचानक किसी महिला की चीख-पुकार सुनकर वह चैंक गया।  उसने अपना कार्य ज्यों-का-त्यों छोड़ा और टैंट से बाहर आकर सामने देखा। वहां पर झील के किनारे लोगों की भीड़ जमा थी।  पहले तो वह वहीं खड़े होर स्थिति को समझने की कोशिश करता रहा लेकिन जब उसकी समझ में कुछ नहीं आया तो वह उस भीड़ की तरफ बढ़ गया। 
भीड़ के पास जाकर उसने जो कुछ देखा उससे उसका दिल दहल गया। उसने देखा एक छोटा लड़का नदी में ऊपर-नीचे गोते लगा रहा है और उसकी मां बिलख-बिलख कर वहां खड़े लोगों से उसे बचाने के लिए 
अनुरोध कर रही थी परन्तु कोई भी झील में उतरने का साहस नहीं कर पा रहा था। 
हालांकि राहुल बहुत अच्छी तरह तैरना जानता था और लड़के की मां की हालत को देखकर उसके मन में यह खयाल भी आया कि वह झील में कूद पड़े और लड़के को बचा ले । लेकिन झील गहरी होने की वजह से वह हिम्मत नहीं कर पाया।  
लड़के को मौत और जिन्दगी के बीच जूझते हुए जब काफी देर हो गई तो वहां खड़े एक आदमी ने कहा, ‘‘मैं आपके लड़के को बचा सकता हूं लेकिन इस काम के लिए आपको मुझे पांच हजार रुपए देने होंगे।’’
पांच हजार रुपए का नाम सुनकर लड़के की मां और अधिक परेशान हो गई। वह गिड़गिड़ाते हुए उस आदमी से बोलीं, ‘‘भैया, मेरे पास पांच हजार रुपए नहीं दो हजार रुपए हैं यह ले लीजिए और मेरे बेटे को बचा लीजिए।’’ लेकिन उस आदमी ने दो हजार रुपए लेने से इनकार कर दिया। ...तो राहुल ने उससे कहा, ‘‘एक तो उनके लड़के की जान पर बनी हुई है ऊपर से आप सौदेबाजी कर रहे हैं। जब आप तैरना जानते हैं तो लड़के को निकाल क्यों नहीं लाते, जो पैसे आन्टी दे रही हैं वो रख लीजिए।’’
राहुल की बात पर वह आदमी एकदम खिसिया गया और उसको झिड़कते हुए बोला, ‘‘अगर तुझे इनसे इतनी हमदर्दी हो रही है तो तू खुद निकाल ला इनके बेटे को।’’
उस आदमी की बात राहुल के हृदय को चुभ गई। उसने आव देखा न ताव और छपाक से झील में छलांग लगा दी। उसके इस अदम्य साहस को देखकर वहां खड़े लोग हतप्रभ रह गए और आंखें फाड़कर उसे देखने लगे। 
हालांकि राहुल के लिए यह काम बहुत मुश्किल था लेकिन नेक काम के लिए ईश्वर भी इंसान की मदद करता है और ऐसा ही राहुल के साथ हुआ। थोड़ी देर की मेहनत-मशक्कत और खींचतान के बाद राहुल उस लड़के को खींचकर किनारे ले आया। किनारे पर खड़े लोगों ने लड़के को बाहर निकाल लिया। उसके बाद उसे उल्टा लिटाकर उसके पेट का सारा पानी निकाल दिया। पेट का पानी निकल जाने के करीब पांच-छह मिनट बाद लड़का अपने होश में आ गया। होश में आते ही उसकी मां ने राहुल को अपने आपसे चिपटा लिया और स्नेह से उसका माथा चूमकर बोलीं, ‘‘बेटा, तुम बहादुर ही नहीं साहसी भी हो....क्या नाम है तुम्हारा ?’’
‘‘जी मेरा नाम राहुल है। मैं यहां स्काउट एण्ड गाईड रैली में आया हुआ हूं।’’ राहुल ने बताया।
‘‘वैरी गुड और तुम्हारे पापा क्या करते हैं ?’’
‘‘जी वह आर्मी में सूबेदार मेजर हैं।’’
‘‘ओह, बहुत अच्छा। बेटा आज तुमने मेरे दीपू को डूबने से बचाकर मुुझ पर जो उपकार किया है उसका बदला तो मैं कभी भी नहीं चुका पाऊंगी। फिर भी यह छोटी-सी भेंट मेरी तरफ से रख लो।’’ उसे वही रुपए जो वह उस आदमी को दे रही थीं देती हुईं बोलीं।
‘‘नहीं आन्टी, यह रुपए देकर मेरे कर्तव्य को कलंकित मत कीजिए। दीपू को मैंने किसी स्वार्थ से नहीं बल्कि अपना कर्तव्य समझकर झील से निकाला है।’’ 
राहुल की बात सुनकर दीपू की मां खुशी से गदगद हो गईं और कहने लगीं,‘‘काश! देश के प्रत्येक बच्चे के मन में तुम्हारी ही तरह देश प्रेम और मानवता की भावना जागृत हो जाए तो यह देश धन्य हो जाए। बेटा, मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है। तुम खूब पढ़ो-लिखो और अपने माता-पिता का नाम रोशन करो।’’
अच्छा आंटी अब मैं भी जाकर अपने कपड़े बदल लूं गीले कपड़ों में मुझे सर्दी लग रही है। इतना कहकर राहुल अपने टैंट की तरफ चल दिया। 
तभी दीपू की मां ने उसे रोकते हुए कहा, ‘‘बेटा तुम तो बहुत चालाक निकले आंटी को अपना एडरस दिए बिना खिसक रहे हो। कम-से-कम अपना पता तो देते जाओ।’’
‘‘ओह साॅरी आंटी, राहुल ने कहा और उन्हें अपना एडरस नोट कराके कैम्प की तरफ चला गया।
‘‘किसकी चिट्ठी है बेटा तुमने कुछ बताया नहीं।’’ राहुल की मम्मी ने कमरे में आकर कहा, जिससे राहुल की विचार शृंखला टूट गई। उसने चिट्ठी अपनी मम्मी को दे दी और कहा मम्मी आप खुद ही पढ़ लीजिए।’’
चिट्ठी पढ़ने के बाद राहुल की मम्मी भी खुशी से झूम उठीं और स्नेह से उसे उन्होंने अपनी गोद में भर लिया।
चर्च के सामने, वीर भट्टी, 
सुभाषनगर, बरेली (उ.प्र.) 243 001
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