अनोखा जन्म दिन

कहानी-गुडविन मसीह


बारिश होने की कल्पना मात्र से ही बरखा का रोम-रोम खुशी से खिल उठता है। मन रोमान्चित हो जाता है, क्योंकि उसे बारिश के पानी में भीगने में बहुत मजा आता है। जब भी बारिश होती है, बरखा उसमें खूब भीगती है। कागज की नाव बनाकर काॅलोनी के बच्चों के साथ खेलती है। इसीलिए उसे जून के महीने का बेसब्री से इन्तजार रहता है, क्योंकि जून में ही मानसून आते हैं और खूब बारिश होती है। उसकी मम्मी उसे बारिश के पानी में भीगने से रोकती भी हैं, तो वह अपने घर के ड्राइंगरूम की खिड़की खोलकर उसके पास बैठ जाती है, जहाँ से उसे बाहर का नजारा बाखूबी दिखाई देता है साथ ही खिड़की से छनकर हवा के झोकों के साथ अन्दर आने वाली बारिश की फुहार उसे रोमान्चित करती है। वह अपने दोनों हाथ खिड़की से बाहर निकाल कर उनमें गिरतीं पानी की बूँदों से तब तक खेलती रहती है, जब तक उसे घर का कोई बड़ा डांटता नहीं।
जून का महीना बरखा के लिए बारिश की ही सौगात लेकर नहीं आता है। यह महीना उसके लिए एक और सौगात लेकर आता है और वह है, उसका अपना जन्म दिन।
‘‘जी हाँ’’ दस साल पहले यानि 27 जून को, जिस दिन बरखा का जन्म हुआ था उस दिन बहुत तेज बारिश हो रही थी। उसके मम्मी-पापा उसे बताते हैं कि जिस दिन वह पैदा हुयी थी उससे पहले बहुत गर्मी पड़ रही थी, जिसकी तपिश से सभी लोग बेहद परेशान थे, लेकिन जिस दिन वह पैदा हुयी, उस दिन सुबह से ही बारिश शुरू हो गई थी और सबको भंयकर गर्मी से निजात मिल गई थी। घर के सभी लोग उस दिन बहुत खुश थे। इसीलिए सबने उसका नाम बरखा रख दिया था। और ये संयोग की बात है कि बरखा के जन्म दिन वाले दिन पानी जरूर बरसता है।
बरखा के मम्मी-पापा हर साल उसका जन्म दिन बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। मनायें भी क्यों नहीं, वह उनकी इकलौती सन्तान होने के नाते बेहद लाडली भी तो है। इसीलिए उसके मम्मी-पापा उसकी हर ख्वाहिश पूरी करते हैं। वह जिस चीज पर हाथ रख देती थी, उसको वही चीज मिल जाती थी। हर बार वह अपने जन्म दिन पर मंहगी डेªस और मंहगा गिफ्ट लेती है और अगर उसे उसकी पसंद का गिफ्ट नहीं मिलता है, तो वह गुस्से से गाल फुलाकर एक तरफ बैठ जाती है। फिर उसे मनाना मुश्किल हो जाता है। इसलिए उसके मम्मी-पापा उसके जन्म दिन से एक सप्ताह पहले ही उसे उसकी पंसद की डेªेस और गिफ्ट खरीद कर दे देते हैं। बरखा के दोस्त भी उसके लिए एक-से-एक बढ़िया गिफ्ट लेकर आते हैं, जिन्हें देखकर बरखा को बहुत खुशी होती है।
लेकिन इस बार बरखा ने अपने मम्मी-पापा से पहले ही कह दिया था कि इस जन्म दिन पर उसे कोई गिफ्ट नहीं चाहिए। इस बात को लेकर बरखा के मम्मी-पापा सोचने भी लगे कि कहाँ तो बरखा अपने बर्थ-डे पर अपनी  डेªस और गिफ्ट के लिए एक महीना पहले से ही शोर मचाने लगती थी, लेकिन इस बार उसे क्या हो गया ? कहीं बरखा उनसे किसी बात को लेकर नाराज हो तो नहीं हो गई, जिसकी वजह से उसने उनसे कुछ भी लेने से मना कर दिया ?
बात आई-गई हो गई। देखते-देखते ही सत्ताइस जून आ गई। सुबह उठते ही उसके मम्मी-पापा ने उसको प्यार से चूमा और जन्म दिन की उसे ढेर सारी बधाई दी। उसके दोस्तों ने भी उसको फोन पर उसके जन्मदिन की बधाईयाँ दीं।
शाम होते ही बरखा के घर पर चहल-पहल शुरू होने लगी। जैसे-जैसे उसके दोस्त आते जा रहे थे, वैसे-वैसे उनका शोर-गुल तेज होता जा रहा था। साथ ही वहां बजने वाला मधुर संगीत माहौल को संगीतमय बना रहा था।
हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी बरखा का कमरा रंग-बिरंगे गुब्बारों और फूल-पत्तियों से सजा हुआ था और बड़ा-सा जन्म दिन का केक मेज पर रखा हुआ था।
बरखा के मम्मी-पापा भी बहुत खुश थे, लेकिन उन्हें इस बात की हैरानी हो रही थी, कि बरखा का कोई भी दोस्त उसके लिए जन्म दिन का गिफ्ट लेकर नहीं आया था। उसके सारे दोस्त खाली हाथ आये हैं, ऐसा
क्यों ? क्या बरखा ने उनको भी गिफ्ट लाने के लिए मना कर दिया ? यदि हाँ, तो उसने ऐसा क्यों किया ? इस बात को जानने के लिए वो बेहद उत्सुक हो रहे थे। बरखा नाराज न हो जाये, इसलिए वो उससे कुछ पूछ भी नहीं पा रही थे।
देखते-ही-देखते आसमान में काले बादल घिर आए और बिजली भी कड़कने लगी। ऐसा लग रहा था जैसे कुछ ही समय में तेज बारिश होने लगेगी। बादलों की गर्जना सुनकर बरखा की मम्मी ने उससे कहा, ‘‘बेटा, मौसम खराब हो रहा है। किसी भी समय बारिश हो सकती है। और अगर बारिश होेने लगी तो तुम्हारे दोस्तों को अपने-अपने घर वापस लौटने में परेशानी होगी इसलिए अब जल्दी से केक काटकर अपना जन्म दिन मनाओ।
‘‘हाँ बरखा, आण्टी ठीक कह रहे हैं, अगर बारिश शुरू हो गई, तो हमें अपने घर जाने में परेशानी होगी। इसलिए तुम अब केक काटकर अपना जन्म दिन मना लो।’’ उसकी सहेली पूर्वी ने कहा।
अपने मम्मी-पापा और पूर्वी की बात पर बरखा हंसकर बोली, ठीक है मैं केक काटती हूँ, लेकिन केक काटने से पहले आप सभी को मेरे साथ कुछ देर के लिए बाहर लाॅन में चलना होगा।’’
‘‘लाॅन में ?’’बरखा की सहेली रिंकी ने कहा।
‘‘हाँ, चलो हम सब लाॅन में चलते हैं। कहकर बरखा अपने घर के लाॅन में आ गयी। उसके पीछे-पीछे उसके दोस्त और उसके मम्मी-पापा भी लाॅन में आ गए। सभी यह जानने के लिए उत्सुक थे कि आखिर बरखा उन्हंे लाॅन में क्यों लायी है ?
बरखा ने सबको ध्यान से देखा फिर मुस्कुराकर बोली, ‘‘मुझे मालूम है कि आप सब लोग यही सोच रहे होंगे कि मैं आप सब को लाॅन में क्यों लेकर आई हूँ। इसके अलावा आप सबके मन में यह भी सवाल कुलबुला रहा होगा कि इस बार अपने बर्थ-डे पर मैंने आप सभी से बर्थ-डे गिफ्ट लेने से क्यों इनकार कर दिया ? तो आप सभी की  जिज्ञासा को शान्त करते हुए मैं आप लोगों को बता दूँ कि इस बार से मैं अपना हर जन्म दिन अलग और अनोखे अन्दाज में मनाया करूंगी ....और मुझे पूरी उम्मीद है कि आप लोगों को मेरा ये अनोखा अन्दाज पसंद आयेगा।
मुझे आप लोगों को यह बताते हुए बेहद खुशी हो रही है कि मैंने अपना जन्म दिन अपनी वसुन्धरा यानि अपनी धरती माँ को समर्पित करते हुए, अपने आप में यह संकल्प लिया है, कि अब मैं अपने जन्म दिन पर किसी से कोई गिफ्ट न लेकर सबको अपनी तरफ से गिफ्ट दिया करूंगी, और वो गिफ्ट होगा ये पौधा। कहकर उसने एक तरफ रखे यूक्लेप्टिस और अशोक के पौधों में से एक पौधा उठाकर कहा।
  ‘‘पौधा...?’’ सभी के मुँह से एक साथ निकला।
‘‘जी हाँ, यह पौधा।
कहकर उसने उन पौधों में से एक-एक पौधा अपने मम्मी-पापा को देकर कहा कि वह लाॅन में खुदे गढ्ढों में यह पौधे लगाकर उसके अनोखे जन्म दिन की शुरूआत करें।
बरखा के मम्मी-पापा ने पोधों को बड़े प्यार से गढ्ढों में गाड़ दिया। पौधे गड़ जाने के बाद उसने अपने सभी दोस्तों को भी एक-एक पौधा देकर कहा, तुम सब भी यहाँ से जाने के बाद इन पौधों को अपने-अपने घर के सामने गाड़ना।’’
उसके बाद बरखा ने उन सबको सम्बोधित करते हुए कहा, ‘‘आप सब यह सोच रहे होगे कि अपने जन्म दिन पर सबको गिफ्ट में पौधे देने का विचार मेरे मन में कैसे और कहां से आया ? तो मैं आप सबको बता दूँ कि पिछले दो महीने पहले मैंने पर्यावरण पर लिखी एक किताब में पढ़ा था कि किस तरह हमारे जंगल और वन काटकर उनकी जगह कंकरीट के जंगल ( ऊँची-ऊँची गगनचुम्बी इमारतें ) बसाये जा रहे हैं, जिनसे न सिर्फ पर्यावरण असंतुलित और प्रदूषित हो रहा है, बल्कि जमीन के अन्दर पानी की मात्रा कम और पृथ्वी की उर्वरा शक्ति दिन-व-दिन कमजोर होती जा रही है। जिससे हमारी जलवायु और मौसम परिवर्तन का खतरा पूरी तरह बढ़ गया है, जिसकी वजह से बारिश कम और अनियमित होने लगी है, परिणामस्वरूप हमारे देश में  भूकम्प आने लगे हैं तथा जन-धन की हानि भी बढ़ती जा रही है, जिससे हमारे पर्यावरणविद, जलसंरक्षण कार्यकर्ता और मौसम विभाग के लोग बेहद चिंतित और परेशान हैं। उनका मानना है कि समय रहते अगर हम नहीं चेते। वन और जंगल कटान को नहीं रोका गया तो यह धरा अपना आपा खो बैठेगी और सबकुछ तहस-नहस हो जायेगा। लोग कीड़े-मकोड़ों की तरह काल के गाल में समा जायेंगे।’’
उस किताब को पढ़कर मैं अन्दर तक कांप गयी और सोचने लगी कि अगर ऐसा हो गया तो क्या होगा ? हमारे सारे सपने, सारी योजनाएँ जो हम अपने भविष्य को लेकर बना रहे हैं, धरी-की-धरी रह जायेंगी। बस यह खयाल मन में आते ही मैंने सोच लिया कि कोई चेते या न चेते पर मुझे अपनी धरती को बचाने की दिशा में अकेले ही काम करना है। अपनी वसुंधरा को पेड़ लगाकर हरा-भरा बनाना है। उसी समय मेरे दिमाग में यह विचार आया कि इस काम की शुरूआत करने के लिए मेरे जन्म दिन से अच्छा मौका और क्या हो सकता है। बस उसी दिन मैंने सोच लिया था कि अब अपने जन्म दिन पर अपने दोस्तों के साथ कम-से-कम पचास पेड़ अपनी काॅलोनी में लगवाऊंगी और तुम सबको भी प्रेरित करूंगी कि तुम सब भी अपने-अपने जन्म दिन पर कम-से-कम पचास नहीं तो दस-दस पेड़ जरूर लगवाओ।’’ बस यह खयाल मन में आते ही मैंने अपनी पाॅकिट मनी के पैसे इकट्ठे करने शुरू कर दिए और शहर की एक नर्सरी में जाकर पता लगाया कि हमें किस पेड़ को लगाने से क्या फायदे हो सकते हैं और वो पेड़ हमें किस कीमत पर उपलब्ध हो सकते हैं ?’’
नर्सरी वाले अंकल ने कुछ पेड़ों के नाम बताये और कहा कि इन पेड़ों को़ लगाने से पर्यावरण को काफी फायदे हो सकते हैं, और ये पेड़ सस्ते भी होते हैं। उन्होंने कहा कि पचास पेड़ करीब पाँच सौ रुपये में आ सकते हैं। बस तभी मैंने सोच लिया कि इतने पैसे तो मैं अपनी पाॅकिट मनी से भी जोड़ सकती हूँ और मैंने ऐसा ही किया।
मेरा आप लोगों से भी यही अनुरोध है कि समय रहते आप सब भी मेरी तरह सोच लीजिए, और पेड़ लगाने का निर्णय ले लीजिए। अगर ऐसा हो गया तो समझो कुछ ही समय में हमारी काॅलोनी, शहर की सबसे ज्यादा हरी-भरी और सुन्दर काॅलोनी हो जायेगी।
‘‘हो जायेगी नहीं, ...हो गई समझो। मैं भी अपने जन्म दिन पर पचास पेड़ लगवाने का संकल्प लेती हूँ।’’ पास खड़ी बरखा की दोस्त दीपाली ने उसकी बात का समर्थन करते हुए कहा।
‘‘दीपाली ही नहीं बरखा, हम सब अपने-अपने जन्म दिन पर पचास-पचास पेड़ लगवायेंगे और अपनी काॅलोनी ही नहीं बल्कि पूरे शहर को हरा-भरा बनाकर अपनी धरती माँ को खुश करेंगे।’’ अक्षत ने कहा।
‘‘हाँ-हाँ हम सब ये वायदा करते हैं कि हम सब अपने-अपने जन्म दिन पर पचास-पचास पेड़ लगवाकर अपना अनोखा जन्म दिन मनायेंगे।’’ अक्षत की तरह सबने एक स्वर में कहा।
‘‘दोस्तों, अगर ऐसा हो गया, तो बहुत अच्छा होगा। मैं यह बात दाबे से कह सकती हूँ कि हमें देखकर दूसरे लोग भी जागरूक होंकर इस दिशा में सोचना शुरू कर देंगे और पेड़ लगाने की शुरूआत कर देंगे।’’
बरखा के छोटे से दिमाग की बड़ी उपज देखकर उसके मम्मी-पापा भाव-विभोर हो गए। उन्होंने उसको प्यार से चिपटा लिया और बोले, ‘‘बेटा, तुमने पेड़ लगाने का संकल्प लेकर हम बड़ों की आँखें खोल दी हैं। वाकई हम बड़े लोग अपने स्वार्थ हेतु कभी धरती के आँसुओं को नहीं देख पाये। इसकी असहनीय पीड़ा को तुम ने महसूस किया है। बेटा, आज से हम भी यही संकल्प लेते हैं कि किसी भी सुअवसर पर हम पचास पेड़ लगाकर धरती की पीड़ा को कम करेंगे।’’ बरखा के पापा ने कहा।
उनकी बात समाप्त होने से पहले बारिश शुरू हो गई। बारिश के शुरू होते ही बरखा और उसके सभी दोस्त अन्दर चले गये। सबके साथ मिलकर बरखा ने अपने जन्म दिन का केक काटा और अपने मम्मी-पापा के साथ सभी को केक खिलाया। केक खाने के बाद सब मिलकर संगीत की धुन पर मस्त हो गये और जन्म दिन की मस्ती में खो गये।
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चर्च के सामने, वीर भट्टी,
सुभाषनगर, बरेली (उ.प्र.) 243001
मो.नं. 09897133577

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